*मजदूरों की मजबूरी* एक ऐसे समय जब विभिन्न राज्यों में रह रहे मजदूर अपने गांव लौटना चाह रहे हैं और उनकी इस चाहत को देखते हुए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं तब हरियाणा से यह समाचार आना एक विसंगति को ही रेखांकित करता है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के तमाम कामगार राज्य के उद्योगों में काम करने के सिलसिले में फिर आना चाह रहे हैं । इन कामगारों ने हरियाणा सरकार के संबंधित पोर्टल पर आवेदन करना भी शुरू कर दिया है । निःसंदेह इसका कारण केवल यह नहीं है कि उद्योग - धंधे फिर से चलाने की कोशिश हो रही है , बल्कि घर लौट गए मजदूरों की यह सोच भी होगी कि आखिर वे कब तक अपने गांव में बने रहेंगे ? इससे इन्कार नहीं कि मजदूरों को अपना गांव - घर भावनात्मक संबल प्रदान करता है , लेकिन वह रोजी - रोटी के अभाव की तल्ख सच्चाई से भी सामना कराता है । यदि विकास की दृष्टि से पीछे रह गए राज्यों में रोजगार के पर्याप्त साधन उपलब्ध होते तो फिर लोगों को दूसरे राज्य जाने की जरूरत ही क्यों पड़ती ? आज का सच यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार ही नहीं , झारखंड , राजस्थान , बंगाल आदि के लोगों को रोजी - रोटी के लिए महाराष्ट्र , गुजरात , कर्नाटक , केरल से लेकर पंजाब , हरियाणा , दिल्ली की दौड़ लगानी पड़ती है । कोरोना कहर ने मजदूरों को पुनः पलायन के लिए विवश किया , लेकिन हरियाणा का मामला यह बताता है कि घर लौट चुके या फिर लौट रहे मजदूरों को फिर अपने कार्यस्थलों में जाना पड़ेगा । आश्चर्य नहीं कि नए सिरे से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें इसलिए चलानी पड़ें कि घर लौट चुके मजदूरों को उनके कार्यस्थलों में पहुंचाना है । इसके आसार इसलिए दिख रहे हैं , क्योंकि कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के प्रयास तेज किए जा रहे हैं । हालांकि अभी ये प्रयास पूरी तौर पर सफल होते नहीं दिख रहे , लेकिन उम्मीद यही है कि जल्द ही कारोबार का थमा पहिया नए सिरे से घूमना शुरू कर देगा । इसके बगैर देश का काम चलने वाला भी नहीं है , लेकिन ऐसा तभी होगा जब कारोबार जगत को पर्याप्त संख्या में कामगार उपलब्ध होंगे । अच्छा होगा कि औद्योगिक गतिविधियां शुरू करने को तैयार राज्य मजदूरों को घरन जाने के लिए मनाएं । उन्हें यह आभास होना चाहिए कि मजदूर गांव घर जाने के लिए इसीलिए बेचैन हुए , क्योंकि उनके रहने - खाने की उचित व्यवस्था नहीं की गई । यह जो भूल हुई उसे न केवल सुधारा जाना चाहिए , बल्कि भविष्य के लिए यह जरूरी सबक भी सीखा जाना चाहिए कि मजदूरों की अनदेखी - उपेक्षा होगी तो उनके साथ साथ पूरे देश को नुकसान उठाना पड़ेगा । यह सबक सीखा जाए , इस पर केंद्र सरकार को भी ध्यान देना चाहिए । *नितिन दुबे संपादक *नर्मदा संदेश*


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